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लेखनी प्रतियोगिता -13-Dec-2023 "ग़ज़ल"

             ग़ज़ल

आँखों और अश्कों ने मिल कर ये कैसा दर्द जगाया है। 
अश्कों से पड़े फफोलों से तन मन को अंदर तक झुलसाया है।। 

मेरी हर निकलती आह ने मुझकों इतना ही समझाया है। 
दर्द का कोई हमराज़ नहीं इसको ख़ुद ही सहते जाना है।।

लोगों ने यहाँ आकर देखो ये कैसा खेल रचाया है। 
उड़ते हुए परिंदों को कफ़स में क़ैद करवाया है।।

मधु गुप्ता "अपराजिता"

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5 Comments

बेहतरीन

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Rupesh Kumar

13-Dec-2023 10:08 PM

V nice

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Varsha_Upadhyay

13-Dec-2023 06:43 PM

Nice one

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